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मंगलवार, 19 जून 2012

प्यास के भीतर प्यास (Pyaas ke bheetar pyaas by Vijaydevnarayan Sahi)



प्यास को बुझाते समय
हो सकता है कि किसी घूँट पर तुम्हें लगे 
कि तुम प्यासे हो, तुम्हें पानी चाहिए
फिर तुम्हें याद आए 
कि तुम पानी ही तो पी रहे हो 
और तुम कुछ भी न कह सको. 

प्यास के भीतर प्यास
लेकिन पानी के भीतर पानी नहीं.


                कवि - विजय देव नारायण साही
                संग्रह - साखी 
                प्रकाशक - सातवाहन, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 1983

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