कहने को सब कुछ अपना है
यूँ तो शबनम भी है दरिया
यूँ तो दरिया भी है प्यासा
यूँ तो हीरा भी है कंकर
यूँ तो मिट्टी भी सोना है
मुँह देखी की बातें हैं सब
किसने किसको याद किया है
तेरे साथ गयी वो रौनक
अब इस शहर में क्या रक्खा है
बात न कर, सूरत तो दिखा दे
तेरा इसमें क्या जाता है
ध्यान के आतिशदान में 'नासिर'
बुझे दिनों का ढेर पडा है
शायर - नासिर काज़मी
संग्रह - ध्यान यात्रा
सम्पादक - शरद दत्त, बलराज मेनरा
सम्पादक - शरद दत्त, बलराज मेनरा
प्रकाशक - सारांश प्रकाशन, दिल्ली, 1994
नासिर काजमी की किताब ध्यान यात्रा कहां से मिल सकती है।
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