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मंगलवार, 26 जून 2012

जीभ मरोड़ियाँ (Tongue twisters by B.V.Karanth)


1 कवि कुल कुठार काका ककुभधरजी का कथन है कि कालिन्दी कूल कलकंठी कोकिला केवल काकली में कूकती है.
2 खलनायक खड़गसिंह खांडा दिखा-दिखाकर अखाड़े में खड़े खिलाड़ियों को खुलेआम खिझाता, फिर खेल-खेल में ही उन खूँसटों की खोपड़ियों को खड़ाऊँ से खुजला देता और खौलती खीर उन्हें खिलाता-ऐसा खबीस खलपति था वह !
3 चपल-चंचल चित्त चारुचन्द्रा की चितवन-चमक की चकाचौंध को जब चींटीनुमा चिड़चिड़े चिलमची चर्चरीचन्द ने भी चुनौती दी, तो चपाति चर्वण में लगे च्यवनप्राशी चूड़ानन्द चकोर और उसके चेले चबेलों की वह चंडाल चौकड़ी भी सचमुच चौंक उठी. 
4 झमझमाती झोंपड़ी, झनझनाते झाँझर, झिलमिलाती झील, झर-झर झरते झरने, झूलती झल्लिका, झीन झाग-फिर झट झुँझोड़ता झंझा, जिनकी झनक व झलक भर से ऐसी झुरझुरी सी लगती कि झींगुर सिंह झुँझलाकर उस झोलीवाले झमेलिए पर झल्ला उठा.
5 भोले-भाले भग्गू भगत और उनकी भयभीता भाभी को भरमानेवाले भभूतधारी-भीमकाय-भयंकर, भाँग-भवानी के भक्त भैरव भस्मासुर ने ज्यों ही एक  भम्भके (भभ्भके) सी भभकी सुनाई तो वह भिनभिनाती भौचक्की भीड़ भाग खड़ी हुई.        


                                                 रचनाकार - ब.व.कारन्त 
                                                 स्रोत - रंग व्यक्तित्व माला ब.व.कारन्त
                                                 लेखक - सम्पादक जयदेव तनेजा
                                                 प्रकाशन - राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली, 2001

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