लालू ने
लिट्टी को
इंटरनेशनल बना दिया !
आप्रवासी भारतीय जुटे थे
इंटरनेशनल हो गया था
समूचा पटना !
बड़ी गहमागहमी रही
दो-तीन रोज़ तो
लालू बोले :
हम चौबीस रोज
अमेरिका रहे
उहाँ हमें उधार का ही
खाना लेना पडा, मजबूरी थी
अपनी लिट्टी कहीं नहीं,
ब्रेड ही ब्रेड आगे आता था
जाम-जेली-सौस … जी हाँ
बहू नहीं सामने आई कहीं !
विदेशी भारतीय विदा हुए तो
लालू ने एक-एक किलो सत्तू दिया
और … हाँ, और
लिट्टी बनाने का तरीका
खुद-ब-खुद सिखलाया -
"जी हाँ, दिक्कत है
गैस की आँच में नहीं -
कंडे की आँच में सिकने पर
इसका अरिजिनल सवाद मिलेगा !
आप चाहेंगे तो आप उहाँ से
अपना कुक (रसोइया) भेजिए,
इहाँ महीने-भर रहेगा
सीख जाएगाSS
मगर हाँ,
एक ठो दिक्कत फिर भी रह जाएगी
कच्चे आम की चटनी,
करोंदे का अचार
कच्चे आँवले की चटनी …
ई सब कइसे होगा ?
लेकिन हाँ, जाना-आना लगा रहेगा तो
आपके तरफ का खाना-पीना
हमारे इहाँ के लोग भी जान जाएंगे
और हाँ, गुझिया, मालपुआ
मिस्सी रोटी … ई सब सीखने में
आपके कुक को कई महीने लग जाएंगे। …
हडबडाइए नहीं
रसे-रसे सब कुछ आपके कुक
सीखिए लेगा नS !!"
- 15 जनवरी, 1996
कवि - नागार्जुन
किताब - नागार्जुन रचनावली, खंड 2
संपादन-संयोजन - शोभाकांत
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2003
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