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सोमवार, 29 सितंबर 2014

मुझे क़दम-क़दम पर (Mujhe kadam-kadam par by Muktibodh)

मुझे क़दम-क़दम पर 
              चौराहे मिलते हैं 
              बाँहें !फैलाए !!

एक पैर रखता हूँ 
कि सौ राहें फूटतीं,
व मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूँ ;
बहुत अच्छे लगते हैं 
उनके तज़ुर्बे और अपने सपने … 
               सब सच्चे लगते हैं ;
अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है,
मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ ;
जाने क्या मिल जाए !!
…   …   … 



कवि - मुक्तिबोध 
किताब - छत्तीसगढ़ में मुक्तिबोध 
संपादक - राजेन्द्र मिश्र 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2014 

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