मुझे क़दम-क़दम पर
चौराहे मिलते हैं
बाँहें !फैलाए !!
एक पैर रखता हूँ
कि सौ राहें फूटतीं,
व मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूँ ;
बहुत अच्छे लगते हैं
उनके तज़ुर्बे और अपने सपने …
सब सच्चे लगते हैं ;
अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है,
मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ ;
जाने क्या मिल जाए !!
… … …
कवि - मुक्तिबोध
किताब - छत्तीसगढ़ में मुक्तिबोध
संपादक - राजेन्द्र मिश्र
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2014
चौराहे मिलते हैं
बाँहें !फैलाए !!
एक पैर रखता हूँ
कि सौ राहें फूटतीं,
व मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूँ ;
बहुत अच्छे लगते हैं
उनके तज़ुर्बे और अपने सपने …
सब सच्चे लगते हैं ;
अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है,
मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ ;
जाने क्या मिल जाए !!
… … …
कवि - मुक्तिबोध
किताब - छत्तीसगढ़ में मुक्तिबोध
संपादक - राजेन्द्र मिश्र
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2014
बहुत बढ़िया रचना
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