तेज़ी से जाती हुई कार के पीछे
पथ पर गिर पड़े
निर्जीव, सूखे, पीले पत्तों ने भी
कुछ दूर दौड़कर गर्व से कहा -
'हममें भी गति है
सुनो, हममें भी जीवन है,
रुको, रुको,
हम भी साथ चलते हैं -
हम भी प्रगतिशील हैं !'
लेकिन उनसे कौन कहे :
प्रगति पिछलग्गूपन नहीं है
और जीवन आगे बढ़ने के लिए
दूसरों का मुँह नहीं ताकता।
कवि - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
संकलन - कविताएँ - 1
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1978
पथ पर गिर पड़े
निर्जीव, सूखे, पीले पत्तों ने भी
कुछ दूर दौड़कर गर्व से कहा -
'हममें भी गति है
सुनो, हममें भी जीवन है,
रुको, रुको,
हम भी साथ चलते हैं -
हम भी प्रगतिशील हैं !'
लेकिन उनसे कौन कहे :
प्रगति पिछलग्गूपन नहीं है
और जीवन आगे बढ़ने के लिए
दूसरों का मुँह नहीं ताकता।
कवि - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
संकलन - कविताएँ - 1
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1978
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