उमड़ते आते हैं शाम के साये
दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी
एक दुनिया उदास है लेकिन
कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी
मुस्कराने लगा है - जाने क्यों ?
वो चला कारवाँ सितारों का
झूमता नाचता सूए-मंज़िल
वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी
वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल
डूबता जा रहा है - जाने क्यों ?
उफ़क़ = क्षितिज जबीं = मस्तक
शायर - इब्ने इंशा
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1990
दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी
एक दुनिया उदास है लेकिन
कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी
मुस्कराने लगा है - जाने क्यों ?
वो चला कारवाँ सितारों का
झूमता नाचता सूए-मंज़िल
वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी
वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल
डूबता जा रहा है - जाने क्यों ?
उफ़क़ = क्षितिज जबीं = मस्तक
शायर - इब्ने इंशा
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1990
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