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मंगलवार, 25 नवंबर 2014

इंतज़ार की रात (Intazar ki raat by Ibne Insha)

उमड़ते आते हैं शाम के साये 
दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी 
एक दुनिया उदास है लेकिन 
कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी 
मुस्कराने लगा है - जाने क्यों ?
वो चला कारवाँ सितारों का 
झूमता नाचता सूए-मंज़िल 
वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी 
वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल 
डूबता जा रहा है - जाने क्यों ?


उफ़क़ = क्षितिज     जबीं = मस्तक 

शायर - इब्ने इंशा 
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1990 

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