इधर तोपते हैं, उधर झाँपते हैं --
सड़ा ठाट ही है ! -- वृथा ढाँपते हैं !
इधर कुछ घटाकर, उधर कुछ बढ़ाकर
गुणा क्या करेंगे ? --- वो क्या नापते हैं ?
ज़मीं ही ग़लत है -- महल क्या टिकेगा !
क़िला है तो यह ! जीभ क्या जाँपते हैं ?
करेंगे दवा मेरी जूड़ी की वो क्या ?
मेरे पास आते जो खुद काँपते हैं !
सराब है ! न चेते अगर 'रुद्र' तो फिर
मरेंगे, जिधर जा रहे हाँपते हैं !
- 1978
कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र'
संपादक - नंदकिशोर नवल
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1991
सड़ा ठाट ही है ! -- वृथा ढाँपते हैं !
इधर कुछ घटाकर, उधर कुछ बढ़ाकर
गुणा क्या करेंगे ? --- वो क्या नापते हैं ?
ज़मीं ही ग़लत है -- महल क्या टिकेगा !
क़िला है तो यह ! जीभ क्या जाँपते हैं ?
करेंगे दवा मेरी जूड़ी की वो क्या ?
मेरे पास आते जो खुद काँपते हैं !
सराब है ! न चेते अगर 'रुद्र' तो फिर
मरेंगे, जिधर जा रहे हाँपते हैं !
- 1978
कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र'
संपादक - नंदकिशोर नवल
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1991
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