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गुरुवार, 20 नवंबर 2014

इधर तोपते हैं, उधर झाँपते हैं (Idhar topte hain, udhar jhanpte hain by Ramgopal Sharma 'Rudra')

इधर तोपते हैं, उधर झाँपते हैं --
सड़ा ठाट ही है ! -- वृथा ढाँपते हैं !

इधर कुछ घटाकर, उधर कुछ बढ़ाकर 
गुणा क्या करेंगे ? --- वो क्या नापते हैं ?

ज़मीं ही ग़लत है -- महल क्या टिकेगा !
क़िला है तो यह ! जीभ क्या जाँपते हैं ?

करेंगे दवा मेरी जूड़ी की वो क्या ?
मेरे पास आते जो खुद काँपते हैं !

सराब है ! न चेते अगर 'रुद्र' तो फिर 
मरेंगे, जिधर जा रहे हाँपते हैं !
                                 - 1978 



कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र'
संपादक - नंदकिशोर नवल 
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1991 

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