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रविवार, 28 जुलाई 2013

ग़ज़ल (Ghazal by 'Akhtar' Sheerani)

वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए !
रात-दिन सूरत को देखा कीजिए 
चाँदनी रातों में इक-इक फूल को 
बेख़ुदी कहती है : सज्दा कीजिए 
जो तमन्ना बर न आए उम्र भर 
उम्र भर उसकी तमन्ना कीजिए ! 
इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर 
चाँदनी रातों में रोया कीजिए 
पूछ बैठे हैं हमारा हाल वो 
बेख़ुदी, तू ही बता क्या कीजिए ! 
हम ही उसके इश्क़ के क़ाबिल न थे 
क्यों किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए ! 
आप ही ने दर्दे-दिल बख़्शा हमें 
आप ही इसका मुदावा कीजिए 
कहते हैं 'अख़्तर' वो सुनकर मेरे शे'र 
इस तरह हमको न रुसवा कीजिए ! 
 
बर न आए = पूरी न हो           मुदावा = इलाज 
 
शायर - 'अख़्तर' शीरानी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : 'अख़्तर' शीरानी

संपादक - नरेश 'नदीम'

प्रकाशक - राधाकृष्ण पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 2010

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