घिर रही है साँझ
हो रहा अब समय
घर कर ले उदासी l
तौल अपने पंख, सारस दूर के
इस देश में तू है प्रवासी l
रात ! तारे हों न हों
रवहीनता को सघनतर कर दे अँधेरा
तू अदीन, लिये हिये में
चित्र ज्योति प्रकाश का
करना जहाँ तुझ को सवेरा l
थिर गयी जो लहर, वह सो जाय
तीर-तरु का बिम्ब भी अव्यक्त में खो जाय
मेघ, मरू, मारुत, मरुण अब आय जो सो आय !
कर नमन बीते दिवस को, धीर !
दे उसी को सौंप
यह अवसाद का लघु पल
निकल चल ! सारस अकेले !
कवि - अज्ञेय संकलन - ऐसा कोई घर आपने देखा है प्रकाशक - नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, 1986
हो रहा अब समय
घर कर ले उदासी l
तौल अपने पंख, सारस दूर के
इस देश में तू है प्रवासी l
रात ! तारे हों न हों
रवहीनता को सघनतर कर दे अँधेरा
तू अदीन, लिये हिये में
चित्र ज्योति प्रकाश का
करना जहाँ तुझ को सवेरा l
थिर गयी जो लहर, वह सो जाय
तीर-तरु का बिम्ब भी अव्यक्त में खो जाय
मेघ, मरू, मारुत, मरुण अब आय जो सो आय !
कर नमन बीते दिवस को, धीर !
दे उसी को सौंप
यह अवसाद का लघु पल
निकल चल ! सारस अकेले !
कवि - अज्ञेय संकलन - ऐसा कोई घर आपने देखा है प्रकाशक - नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, 1986
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