मैं जब कमसिन था और तू अपने सीने लगाती थी
तिरी हँसती हुई नज़रों से मुझको शर्म आती थी
कमसिन = कम उम्र
मचलता था मैं तेरी गोद से बाहर निकलने को
मगर तू इक अदा-ए-मुतमइन से मुस्कुराती थी
अदा-ए-मुतमइन = इत्मीनान की अदा
तिरे वो गीत अब तक गूँजते हैं मेरे कानों में
जिन्हें मेरे लिए गाती थी तू और गुनगुनाती थी
समझता था बहुत कम मतलब उन गीतों का मैं लेकिन
तिरी उस शोख़ि-ए-गोया से मुझको शर्म आती थी
शोख़ि-ए-गोया = बोलती हुई शोख़ी
तिरा वो मख़मली बिस्तर अभी तक याद है मुझ को
मुझे सर्दी के डर से जिसमें तू अकसर सुलाती थी
वो बिस्तर, यासमीं बिस्तर, सरासर अंबरीं बिस्तर
महक से जिनकी हूराने-जिनाँ को नींद आती थी
यासमीं = चमेली जैसी अंबरीं = ख़ुशबूदार हूराने-जिनाँ = स्वर्ग की अप्सराओं
मैं सो जाता था जब रंगीं दुलाई ओढ़कर तेरी
तू अपने मरमरीं हाथों से मुझको गुदगुदाती थी
मरमरीं = संगमरमर
वो तेरी ख़्वाबगह के नीलगूँ अबरेशमीं पर्दे
सरे-शाम आके नरगिस जिनको चुपके से गिराती थी
ख़्वाबगह = शयन कक्ष नीलगूँ = नीले रंग के अबरेशमीं = रेशमी
दिमाग़ अब तक मुअत्तर है तिरी मस्ताना ख़ुशबू से
तिरे गजरे की कलियों को भी जो बेखुद बनाती थी
मुअत्तर = सुगन्धित
तिरा मुश्कीं तनफ़्फ़ुस बस रहा है अब भी होटों में
असर से जिसके इक लरज़िश सी दिल में तैर जाती थी
तनफ़्फ़ुस = महकती साँस लरज़िश = कम्पन
तिरी रंगीं जवानी नक़्श है अब तक मिरे दिल पर
जो तेरे फूल से पैकर के अन्दर लहलहाती थी
पैकर = काया
तिरी वो महफ़िलें आबाद हैं अब तक तसव्वर में
तू जिनमें अपनी गुड़िया से मिरी शादी रचाती थी
तसव्वर = कल्पना
तिरी आँखें, वो शोख़ आँखें नहीं भूलीं अभी मुझको
की जिनमें इक रसीली मुस्कुराहट झिलमिलाती थी
मगर ऐ शाहज़ादी, आज कुछ तुझको ख़बर भी है
कि वो कमसिन जिसे तू अपने सीने से लगाती थी
वो शायर है कि दुनिया में कहानी उसकी रुसवा है
वो रुसवा, उसका दिल रुसवा, जवानी उसकी रुसवा है !
रुसवा = बदनाम
तिरी हँसती हुई नज़रों से मुझको शर्म आती थी
कमसिन = कम उम्र
मचलता था मैं तेरी गोद से बाहर निकलने को
मगर तू इक अदा-ए-मुतमइन से मुस्कुराती थी
अदा-ए-मुतमइन = इत्मीनान की अदा
तिरे वो गीत अब तक गूँजते हैं मेरे कानों में
जिन्हें मेरे लिए गाती थी तू और गुनगुनाती थी
समझता था बहुत कम मतलब उन गीतों का मैं लेकिन
तिरी उस शोख़ि-ए-गोया से मुझको शर्म आती थी
शोख़ि-ए-गोया = बोलती हुई शोख़ी
तिरा वो मख़मली बिस्तर अभी तक याद है मुझ को
मुझे सर्दी के डर से जिसमें तू अकसर सुलाती थी
वो बिस्तर, यासमीं बिस्तर, सरासर अंबरीं बिस्तर
महक से जिनकी हूराने-जिनाँ को नींद आती थी
यासमीं = चमेली जैसी अंबरीं = ख़ुशबूदार हूराने-जिनाँ = स्वर्ग की अप्सराओं
मैं सो जाता था जब रंगीं दुलाई ओढ़कर तेरी
तू अपने मरमरीं हाथों से मुझको गुदगुदाती थी
मरमरीं = संगमरमर
वो तेरी ख़्वाबगह के नीलगूँ अबरेशमीं पर्दे
सरे-शाम आके नरगिस जिनको चुपके से गिराती थी
ख़्वाबगह = शयन कक्ष नीलगूँ = नीले रंग के अबरेशमीं = रेशमी
दिमाग़ अब तक मुअत्तर है तिरी मस्ताना ख़ुशबू से
तिरे गजरे की कलियों को भी जो बेखुद बनाती थी
मुअत्तर = सुगन्धित
तिरा मुश्कीं तनफ़्फ़ुस बस रहा है अब भी होटों में
असर से जिसके इक लरज़िश सी दिल में तैर जाती थी
तनफ़्फ़ुस = महकती साँस लरज़िश = कम्पन
तिरी रंगीं जवानी नक़्श है अब तक मिरे दिल पर
जो तेरे फूल से पैकर के अन्दर लहलहाती थी
पैकर = काया
तिरी वो महफ़िलें आबाद हैं अब तक तसव्वर में
तू जिनमें अपनी गुड़िया से मिरी शादी रचाती थी
तसव्वर = कल्पना
तिरी आँखें, वो शोख़ आँखें नहीं भूलीं अभी मुझको
की जिनमें इक रसीली मुस्कुराहट झिलमिलाती थी
मगर ऐ शाहज़ादी, आज कुछ तुझको ख़बर भी है
कि वो कमसिन जिसे तू अपने सीने से लगाती थी
वो शायर है कि दुनिया में कहानी उसकी रुसवा है
वो रुसवा, उसका दिल रुसवा, जवानी उसकी रुसवा है !
रुसवा = बदनाम
शायर - 'अख़्तर' शीरानी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : 'अख़्तर' शीरानी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : 'अख़्तर' शीरानी
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - राधाकृष्ण पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 2010
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