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शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

चाँदनी (Chandanee by Ramvilas Sharma)

चाँदी की झीनी चादर-सी 
         फैली है वन पर चाँदनी l 
चाँदी का झूठा पानी है 
         यह माह-पूस की चाँदनी l 
खेतों पर ओस-भरा कुहरा,
         कुहरे पर भीगी चाँदनी ;
आँखों में बादल-से आँसू,
          हँसती है उन पर चाँदनी l 
दुख की दुनिया पर बुनती है 
          माया के सपने चाँदनी l 
मीठी  मुसकान बिछाती है 
          भीगी पलकों पर चाँदनी l 
लोहे की हथकड़ियों-सा दुख,
           सपनों-सी झूठी चाँदनी ;
लोहे से दुख को काटे क्या 
            सपनों-सी मीठी चाँदनी l 
यह चाँद चुरा कर लाया है 
            सूरज से अपनी चाँदनी l 
सूरज निकला, अब चाँद कहाँ ?
             छिप गयी लाज से चाँदनी l 
दुख और कर्म का यह जीवन,
              वह चार दिनों की चाँदनी l 
यह कर्म-सूर्य की ज्योति अमर,
              वह अन्धकार की चाँदनी l 


कवि - रामविलास शर्मा 
संकलन - तार सप्तक
संकलनकर्ता और संपादक - अज्ञेय 
प्रकाशक -  भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, पहला संस्करण - 1963

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