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बुधवार, 29 जनवरी 2014

कल (Kal by Dhoomil)

देह के बसन्त में वापस लौटते हुए, कल तुम पाओगे 
अपनी नफ़रत के लिए कोई कविता ज़रूरी नहीं है 
अपने जालों के साथ लौट जाएँगे 
वे जो शरीरों की बिक्री में माहिर हैं l 

कल तुम ज़मीन पर पड़ी होगी और बसन्त पेड़ पर होगा 
नीमतल्ला, बेलियाघाट, जोड़ाबगान 
फूलों की मृत्यु से उदास फूलदान 
और उगलदान में कोई फ़र्क नहीं होगा l

कवि - धूमिल
संकलन - कल सुनना मुझे
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2003

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