लखूखा आदमी दुनिया में रहता है
मेरे उस दर्द से अनजान जो कि हर वक़्त
मुझे रहता है हिन्दी में दर्द की सैंकड़ों
कविताओं के बावजूद
और लाखों आदमियों का जो दर्द मैं जानता हूँ
उससे अनजान
लखूखा आदमी दुनिया में रहे जाता है l
कवि - रघुवीर सहाय
किताब - रघुवीर सहाय रचनावली, खंड - 1 में 'आत्महत्या के विरुद्ध' से
संपादक - सुरेश शर्मा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2000
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ !
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