हुस्न फिर फ़ित्नागर है, क्या कहिए
दिल की जानिब नज़र है, क्या कहिए
फिर वही रहगुज़र है, क्या कहिए
ज़िन्दगी राह पर है, क्या कहिए
हुस्न ख़ुद पर्दा-दर है, क्या कहिए
ये हमारी नज़र है, क्या कहिए
आह तो बेअसर थी बरसों से
नग़मा भी बेअसर है, क्या कहिए
हुस्न है अब न हुस्न के जल्वे
अब नज़र ही नज़र है, क्या कहिए
आज भी है 'मजाज़' ख़ाकनशीं
और नज़र अर्श पर है, क्या कहिए
जानिब = तरफ़ पर्दा-दर = पर्दे को चीरनेवाला
ख़ाकनशीं = धूल में पड़ा अर्श = आकाश
दिल की जानिब नज़र है, क्या कहिए
फिर वही रहगुज़र है, क्या कहिए
ज़िन्दगी राह पर है, क्या कहिए
हुस्न ख़ुद पर्दा-दर है, क्या कहिए
ये हमारी नज़र है, क्या कहिए
आह तो बेअसर थी बरसों से
नग़मा भी बेअसर है, क्या कहिए
हुस्न है अब न हुस्न के जल्वे
अब नज़र ही नज़र है, क्या कहिए
आज भी है 'मजाज़' ख़ाकनशीं
और नज़र अर्श पर है, क्या कहिए
जानिब = तरफ़ पर्दा-दर = पर्दे को चीरनेवाला
ख़ाकनशीं = धूल में पड़ा अर्श = आकाश
शायर - मजाज़ लखनवी
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : मजाज़ लखनवी
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - राधाकृष्ण पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 2001
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