Translate

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

दोस्त (Dost by Amrita Pritam)


दोस्त ! तुमने ख़त तो लिखा था 
पर दुनिया की मार्फ़त डाला 
और दोस्त ! मोहब्बत का ख़त 
जो धरती के नाप का होता है 
जो अम्बर के नाप का होता है 
वह दुनियावालों ने पकड़कर 
एक क़ौम जितना कतर कर 
क़ौम के नाप का कर डाला … 

और फिर शहरों में चर्चा हुई 
वह तेरा ख़त जो मेरे नाम था 
लोग कहते हैं 
कि मज़हब के बदन पर 
वह बहुत ढीला लगता 
सो ख़त की इबारत को उन्होंने 
कई जगह से फाड़ लिया था … 

और आगे तू जानता 
कि वे कैसे माथे 
जिनकी समझ के नाप 
हर अक्षर ही खुला आता 
सो उन्होंने अपने माथे 
अक्षरों पर पटके 
और हर अक्षर उधेड़ डाला था … 

और मुझे जो ख़त नहीं मिला 
पर जिसकी मार्फ़त आया 
वह दुनिया दुखी है - कि मैं 
उस ख़त के जवाब जैसी हूँ … 

यित्री - अमृता प्रीतम
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1983

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें