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सोमवार, 30 जून 2014

विज्ञान (Vigyan by Dinkar)

साहित्य और नीतिशास्त्र में सम्बन्ध है। इस संबंध पर दृष्टि जनता की भी रहती है और सरकार की भी। जब मैंने कुरुक्षेत्र में लिखा था, "सावधान मनुष्य, यदि विज्ञान है तलवार", तब मेरे अंतर्मन में विज्ञान के विषय में ऐसे ही किसी संशय की बात रही होगी। मगर उस समय लोग मुझ पर हँसे थे।  अब अमरीका में चर्चा जोर से चल रही है, विज्ञान को कानून के शिकंजे में लाओ, विज्ञान को कॉन्सटीच्युसनलाइज करो। परमाणु बम बनाने वाले वैज्ञानिक ने कहा था, आई न्यू सिन व्हाइल मेकिंग ए बॉम्ब। पाप का भान उसे बम बनाते समय नहीं, हिरोशिमा के कांड के बाद हुआ होगा। लेकिन विज्ञान को कानून के शिकंजे में लाने की दलील तब और मजबूत हो जाती है, जब हम बायलाजी और जिनेटिक्स के बारे में सोचते हैं। जो भी विज्ञान जीवन के विज्ञान हैं, लाइफ साइंस हैं, उन्हें नैतिक होना ही चाहिए।  यह सिद्ध हो चुका है कि विज्ञान सवभाव से फासिज्म का विरोधी नहीं है। केवल वैज्ञानिकों के हाथ में विज्ञान को छोड़ देना खतरे से खाली नहीं है।  आविष्कारों के परिणाम दूरगामी होते हैं और वैज्ञानिक केवल विशेषज्ञ होता है। वह अपने आविष्कारों की सभी सामाजिक, नैतिक और दार्शनिक व्याप्तियों को समझ नहीं पाता।  उस पर तुर्रा यह कि वैज्ञानिक भी ब्यूरोक्रेटाइज हो गये हैं। हर वैज्ञानिक एक पुरजे के पीछे लगा है। असली चीज क्या बन रही है, यह वह नहीं जानता। जानते वे हैं, जो संगठन का निर्माण करते हैं।  नाजियों ने चिकित्सा-विज्ञान का भी दुरुपयोग किया था। विज्ञान को नैतिक दृष्टि से तटस्थ मानने का समय नहीं रहा।  आधुनिक आविष्कारों में हिट की जितनी संभावना है, उतनी ही अहित की भी है।

दुनिया में राज टेक्नालॉजी का चल रहा है।  संसार के भविष्य का कानून विज्ञान बना रहा है। ऐसी शक्ति को नियंत्रण में रखने के लिए कुछ किया जाना चाहिए।

10 जुलाई, 1972 (दिल्ली)


लेखक - रामधारी सिंह दिनकर 
किताब - दिनकर की डायरी 
प्रकाशक - नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, दूसरा संस्करण - 1998 

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