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मनमाफ़िक मेरी पसंदीदा कविताओं, कहानियों और अन्य रचनाओं का संकलन है.
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रविवार, 26 अगस्त 2012
क़स्बे में दिन ढले (Kasbe mein din dhale by Raghuvir Sahay)
क़स्बे में दिन ढले
युवती के चेहरे पर
लालटेन की आभा :
ऊब और कोहरे में
खोया हुआ आँगन
करती है पार उसे रोशनी लिए युवती.
कवि - रघुवीर सहाय
संकलन - कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1989
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