जीवन की ये दुश्वारियाँ
मजबूरियाँ, लाचारियाँ
ये ज़िल्लतें, ये ख़्वारियाँ
ये रेंगती-सी हसरतें
ये दासता की लानतें
ये गुलामों की किस्मतें
इक क़हर था
जो जर लिया
इक सबर था
जो कर लिया
इक ज़हर था
जो पी लिया
इक मौत को भी
जी लिया
छाती में आग जल रही
आँखों से पानी बह रहा
सुनो सुनो सुनो सुनो
यह वक़्त क्या कुछ कह रहा
यह वक़्त क्या कुछ सह रहा
यह वक़्त क्या कुछ कह रहा
मैं वक़्त एक सवाल हूँ -
ये गोलियों से छलनी
दीवारों का सवाल
ये हज़ारों आत्माओं की
पुकारों का सवाल
ये ज़र्द चेहरे, ये सर्द लाशें
अँधेरा, अँधेरा
और होठों पर लगा
संगीनों का पहरा
ये घायल उम्मीदें,
ये ज़ख़्मी आवाज़ें
ये खूनी सवेरे,
ये काली दुपहरें
आओ, अब आओ
ये अँधेरा जलाओ
बादशाहियत के आगे,
शहंशाहियत के आगे
ये सर नहीं झुकेगा,
नहीं झुकेगा
ये जवानी का दावा
ये छाती का लावा
ये अब नहीं रुकेगा
नहीं रुकेगा
ये दीवारें, ये कूचे,
ये बरबाद गलियाँ
ये गलियाँ
जो दुखों में पली हैं, दुखों में ढली हैं
और देखो ये गलियाँ -
गुलामी की दुनिया जलाने चली हैं l
कवयित्री - अमृता प्रीतम
संकलन - प्रतिनिधि कविताएँ
प्रकाशक - राजकमल पेपरबैक्स, दिल्ली, पहला संस्करण - 1983
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