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मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

तनहाई (Tanhai by Faiz Ahmad Faiz)


फिर कोई आया दिले-ज़ार नहीं कोई नहीं
राहरौ होगा, कहीं और चला जायेगा
ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का ग़ुबार 
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीद: चिराग़ 
सो गई रास्त: तक-तक के हरइक राहगुज़ार 
अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिये क़दमों के सुराग़ 
गुल करो शम्एँ, बढ़ा दो मयो-मीना-ओ-अयाग़ 
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो 
अब यहाँ कोई नहीं, कोई नहीं आयेगा 

राहरौ - पथिक,       ऐवानों - महलों
मयो-मीना-ओ-अयाग़ - शराब, सुराही और प्याला, 
मुक़फ़्फ़ल -  ताला लगाना 

शायर - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ 
संकलन - सारे सुख़न हमारे 
संपादक - अब्दुल बिस्मिल्लाह 
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1987

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