फिर कोई आया दिले-ज़ार नहीं कोई नहीं
राहरौ होगा, कहीं और चला जायेगा
ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का ग़ुबार
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीद: चिराग़
सो गई रास्त: तक-तक के हरइक राहगुज़ार
अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिये क़दमों के सुराग़
गुल करो शम्एँ, बढ़ा दो मयो-मीना-ओ-अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
अब यहाँ कोई नहीं, कोई नहीं आयेगा
राहरौ - पथिक, ऐवानों - महलों
मयो-मीना-ओ-अयाग़ - शराब, सुराही और प्याला,
मुक़फ़्फ़ल - ताला लगाना
शायर - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
संकलन - सारे सुख़न हमारे
संपादक - अब्दुल बिस्मिल्लाह
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1987
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