हम तो रोटीके मतवाले !
नहीं चाह मदिराकी साक़ी क्या होंगे ये प्याले !
सुरापान कर जीवनके दुख नहीं भुलाना हमको !
हम तो दुखजीवनके प्रेमी, गावें राग निराले !
विस्मृतिके सागर में बहना, हम अति तुच्छ समझते,
कंटकमय जीवनपथ चलते, पड़े पदोंमें छाले,
इन काँटोंकी पीर जगानेको खाते हम रोटी,
पाकर जीवनदान उसीमें हो जाते मतवाले !
कवि - श्रीमन्नारायण अग्रवाल
किताब - सितारे (हिन्दुस्तानी पद्योंका सुन्दर चुनाव)
संकलनकर्ता - अमृतलाल नाणावटी, श्रीमननारायण अग्रवाल, घनश्याम 'सीमाब'
प्रकाशक - हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, वर्धा, तीसरी बार, अप्रैल, 1952
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