अलमस्त हुई मन झूम उठा, चिड़ियाँ चहकीं डरियाँ डरियाँ
चुन ली सुकुमार कली बिखरी मृदु गूँथ उठीं लरियाँ लरियाँ
किसकी प्रतिमा हिय में रखिके नव आर्ति करूँ थरियाँ थरियाँ
किस ग्रीवा में डार ये डालूँ सखी, अँसुआन ढरूँ झरियाँ झरियाँ
सुकुमार पधार खिलो टुक तो इस दीन गरीबिन के अँगना
हँस दो, कस दो रस की की रसरी, खनका दो अजी कर के अँगना
तुम भूल गये कल से हलकी चुनरी गहरे रँग में रँगना
कर में कर थाम लिये चल दो रँग में रँग के अपने सँग - ना ?
निज ग्रीव में माल-सी डाल तनिक कृतकृत्य करौ शिथिला बहियाँ
हिय में चमके मृदु लोचन वे, कुछ दूर हटे दुख की बहियाँ
इस साँस की फाँस निकाल सखे, बरसा दो सरस रस की फुहियाँ
हरखे हिय रास रसे जियरा, खिल जायें मनोरथ की जुहियाँ l
कवि - बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
संकलन - आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि : 'नवीन'
संपादक - भवानीप्रसाद मिश्र
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, दिल्ली
चुन ली सुकुमार कली बिखरी मृदु गूँथ उठीं लरियाँ लरियाँ
किसकी प्रतिमा हिय में रखिके नव आर्ति करूँ थरियाँ थरियाँ
किस ग्रीवा में डार ये डालूँ सखी, अँसुआन ढरूँ झरियाँ झरियाँ
सुकुमार पधार खिलो टुक तो इस दीन गरीबिन के अँगना
हँस दो, कस दो रस की की रसरी, खनका दो अजी कर के अँगना
तुम भूल गये कल से हलकी चुनरी गहरे रँग में रँगना
कर में कर थाम लिये चल दो रँग में रँग के अपने सँग - ना ?
निज ग्रीव में माल-सी डाल तनिक कृतकृत्य करौ शिथिला बहियाँ
हिय में चमके मृदु लोचन वे, कुछ दूर हटे दुख की बहियाँ
इस साँस की फाँस निकाल सखे, बरसा दो सरस रस की फुहियाँ
हरखे हिय रास रसे जियरा, खिल जायें मनोरथ की जुहियाँ l
कवि - बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
संकलन - आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि : 'नवीन'
संपादक - भवानीप्रसाद मिश्र
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, दिल्ली
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