समय को चौबीस घण्टों ने
जकड़ रखा है
सुकून से बात करना है तो
चौबीस घण्टों के बाहर के
समय में तुम आओ
मैं तुम्हारा इन्तज़ार करूँगा
बीते हुए समय को
अभी के समय में बदलकर
पहली मुलाक़ात के
क्षण से शुरू करें !
कवि - रतन थियाम
मणिपुरी भाषा से अनुवाद - उदयन वाजपेयी
पत्रिका - संगना, वर्ष 2, अंक 7-8, जुलाई-सितंबर / अक्टूबर-दिसंबर 2012
संपादक - प्रयाग शुक्ल
प्रकाशक - संगीत नाटक अकादेमी, दिल्ली
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