इक नन्हीं मुन्नी सी पुजारन
पतली बाहें, पतली गरदन
भोर भये मन्दिर आई है
आई नहीं है मां लाई है
वक़्त से पहले जाग उठी है
नींद अभी आंखों में भरी है
ठोड़ी तक लट आई हुई है
यूंही सी लहराई हुई है
आंखों में तारों की चमक है
मुखड़े पर चांदी की झलक है
कैसी सुन्दर है क्या कहिए
नन्हीं सी इक सीता कहिए
धूप चढ़े तारा चमका है
पत्थर पर इक फूल खिला है
चांद का टुकड़ा, फूल की डाली
कमसिन, सीधी, भोली-भाली
कान में चांदी की बाली है
हाथ में पीतल की थाली है
दिल में लेकिन ध्यान नहीं है
पूजा का कुछ ज्ञान नहीं है
कैसी भोली और सीधी है
मन्दिर की छत देख रही है
मां बढ़कर चुटकी लेती है
चुपके-चुपके हंस देती है
हंसना रोना उसका मज़हब
उसको पूजा से क्या मतलब
ख़ुद तो आई है मन्दिर में
मन उसका है गुड़िया-घर में
(1936)
शायर - मजाज़
किताब - मजाज़ : प्रतिनिधि शायरी
संपादक - अर्जुमन्द आरा
प्रकाशक - पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस (प्रा) लि , दिल्ली, 2011
पतली बाहें, पतली गरदन
भोर भये मन्दिर आई है
आई नहीं है मां लाई है
वक़्त से पहले जाग उठी है
नींद अभी आंखों में भरी है
ठोड़ी तक लट आई हुई है
यूंही सी लहराई हुई है
आंखों में तारों की चमक है
मुखड़े पर चांदी की झलक है
कैसी सुन्दर है क्या कहिए
नन्हीं सी इक सीता कहिए
धूप चढ़े तारा चमका है
पत्थर पर इक फूल खिला है
चांद का टुकड़ा, फूल की डाली
कमसिन, सीधी, भोली-भाली
कान में चांदी की बाली है
हाथ में पीतल की थाली है
दिल में लेकिन ध्यान नहीं है
पूजा का कुछ ज्ञान नहीं है
कैसी भोली और सीधी है
मन्दिर की छत देख रही है
मां बढ़कर चुटकी लेती है
चुपके-चुपके हंस देती है
हंसना रोना उसका मज़हब
उसको पूजा से क्या मतलब
ख़ुद तो आई है मन्दिर में
मन उसका है गुड़िया-घर में
(1936)
शायर - मजाज़
किताब - मजाज़ : प्रतिनिधि शायरी
संपादक - अर्जुमन्द आरा
प्रकाशक - पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस (प्रा) लि , दिल्ली, 2011
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