ख्यालों में अब भी है कुछ
हरा-भरा-सा
थोड़ा सपना भी है आँखों में
बहुत कुछ बाकी है अब भी जहाँ में
प्यार के काबिल
फिर क्यों उदास होऊँ मैं भला !
अब भी थरथराता है
नीलकमल आँखों में
भले ही बारूदी-सी गन्ध हो फिजाओं में
लेकिन अन्त नहीं है यह
आएगा कोई खत
कहीं से लिए थोड़ी-सी हरियाली जरूर
यह मौसम उदासी के लिए नहीं है
कवि - प्रणय कुमार
संकलन - जनपद : विशिष्ट कवि
संपादक - नंदकिशोर नवल, संजय शांडिल्य
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2006
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