यदि तोर डाक शुने केउ ना
आसे
तबे एक्ला चलो रे l
एक्ला चलो, एक्ला चलो,
एक्ला चलो रे ll
यदि केउ कथा ना कय –
(ओरे ओरे ओ अभागा !)
यदि सबाइ थाके मुख फिराये,
सबाइ करे भय –
तबे पराण खुले,
ओ तुइ मुख फुटे तोर मनेर
कथा,
एक्ला बलो रे ll
यदि सबाइ फिरे जाय –
(ओरे ओरे ओ अभागा !)
यदि गहन पथे जाबार काले
केउ फिरे ना चाय –
तबे पथेर काँटा
ओ तुइ रक्तमाखा चरण तले
एक्ला दलो रे ll
यदि आलो ना घरे –
(ओरे ओरे ओ अभागा !)
यदि झड़ बादले आँधार राते
दुयार देय घरे –
तबे बज्रानले
आपन बुकेर पांजर ज्वालिये
निये
एक्ला ज्वलो रे ll
यदि तोर डाक शुने कोउ न
आसे,
तबे एक्ला चलो रे l
एक्ला चलो, एक्ला चलो,
एक्ला चलो रे ll
कवि - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
किताब - हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली, खण्ड 8 में संकलित 'मृत्युंजय रवीन्द्र' से
सम्पादक - मुकुन्द द्विवेदी
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पहला संस्करण - 1981
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वाह
बधाई
शुक्रिया !