(घनाक्षरी)
हार मन मार मार की बहू ललाट ठोंक
काजल बहा कपोल कुत्सित किया करें l
अंचल ? लजी मशालची की लालटेन काली
नेत्र जल से प्रबल नासिका सदा झरे l
कल्पना ललाम की लगाम थाम कविदल
मुख तुलना न कभी चन्द्र के बिना करे l
चाँद आइने में चारु चित्र देख चुप वह
तकिया सहारे पड़ी तारे ही गिना करे l
[आदर्श, मासिक, कलकत्ता, वर्ष 1, अंक 2-4, पौष-माघ, 1979 (1922ई.)]
कवि - निराला
संग्रह - असंकलित कविताएँ : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला में
रामविलास शर्मा की 'निराला की साहित्य साधना - 1' से
संपादक - नन्दकिशोर नवल
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1981
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