पीपल के पत्ते ने ज्यों मुँह खोला खोला
त्यों चटाक से लगा तमाचा आ कर लू का,
झेल गया वह भी आखिर बच्चा था भू का l
लेकिन जिस ने देखा उस का धीरज डोला,
बैठ कलेजा गया l तड़प कर कोकिल बोला
कू ऊ कू ऊ मिले भले ही आधा टूका
लेकिन ऐसा न हो l राह चलते जो चूका
उस को दुख ने अदल बदल कर फिर फिर तोला l
सब को नहीं, नौनिहालों को अगर बचा दे
तो लू का डर नहीं, जहाँ चाहे आ जाए,
लू लपटों में मिट्टी पक्की हो जाती है
चाहे जिस तरंग से जग के खेल रचा दे
क़सम जवानी की यदि मैं ने पाँव हटाए
छाती हारों के प्रहार सहती जाती है l
कवि - त्रिलोचन
संकलन - फूल नाम है एक
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 1985
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