इछामती और मेघना
महानंदा
रावी और झेलम
गंगा, गोदावरी
नर्मदा और घाघरा
नाम लेते हुए भी तकलीफ होती है
उनसे उतनी ही मुलाकात होती है
जितनी वे रास्ते में आ जाती हैं
और उस समय भी दिमाग
कितना कम पास जा पाता है
दिमाग तो भरा रहता है
लुटेरों के बाजार के शोर से l
- 1996
कवि - आलोक धन्वा
संकलन - कविता नदी
संपादक - प्रयाग शुक्ल
प्रकाशक - महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी वि.वि. के लिए
किताबघर प्रकाशन, दिल्ली, 2002
महानंदा
रावी और झेलम
गंगा, गोदावरी
नर्मदा और घाघरा
नाम लेते हुए भी तकलीफ होती है
उनसे उतनी ही मुलाकात होती है
जितनी वे रास्ते में आ जाती हैं
और उस समय भी दिमाग
कितना कम पास जा पाता है
दिमाग तो भरा रहता है
लुटेरों के बाजार के शोर से l
- 1996
कवि - आलोक धन्वा
संकलन - कविता नदी
संपादक - प्रयाग शुक्ल
प्रकाशक - महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी वि.वि. के लिए
किताबघर प्रकाशन, दिल्ली, 2002
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