जितनी बर्फ़ नज़र आती है हमको कंचनगंगा में
उतना ही दंगा होता होगा शायद दरभंगा में
आप मरे तो जग परलै, हर डूबनेवाला कहता था
अपने लिए तो फ़र्क़ नहीं, चाहे जमना में चाहे गंगा में
कुछ तो एक ख़लीज है और कंघा सरदार की ज़ीनत है
कुछ में लेकिन बात नहीं जो बात है उनके कंघा में
अंगे का तो क़ाफ़िया मेरे बस में नहीं क्यों ? ये भी सुनो
अंगे का गर क़ाफ़िया बाँधा, कहना पड़ेगा अंगा में
हज़रते-मोहमिल इक दिन नंग-धड़ंग मलंग से कहने लगे
ये तो कहो कुछ लुत्फ़ भी आता है इस नंग-धड़ंगा में
परलै = प्रलय
ख़लीज = खाड़ी
ज़ीनत = शोभा
हज़रते-मोहमिल = निरर्थक महोदय
शायर - मीराजी (25.9.1912 - 3.11.1949)
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : मीराजी संपादक - नरेश 'नदीम' प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010
उर्दू शायरी में हज़ल के तीन अर्थ प्रचलित हैं : उलटबानी जैसी शायरी, बेतुकी शायरी या अश्लील शायरी।
उतना ही दंगा होता होगा शायद दरभंगा में
आप मरे तो जग परलै, हर डूबनेवाला कहता था
अपने लिए तो फ़र्क़ नहीं, चाहे जमना में चाहे गंगा में
कुछ तो एक ख़लीज है और कंघा सरदार की ज़ीनत है
कुछ में लेकिन बात नहीं जो बात है उनके कंघा में
अंगे का तो क़ाफ़िया मेरे बस में नहीं क्यों ? ये भी सुनो
अंगे का गर क़ाफ़िया बाँधा, कहना पड़ेगा अंगा में
हज़रते-मोहमिल इक दिन नंग-धड़ंग मलंग से कहने लगे
ये तो कहो कुछ लुत्फ़ भी आता है इस नंग-धड़ंगा में
परलै = प्रलय
ख़लीज = खाड़ी
ज़ीनत = शोभा
हज़रते-मोहमिल = निरर्थक महोदय
शायर - मीराजी (25.9.1912 - 3.11.1949)
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : मीराजी संपादक - नरेश 'नदीम' प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010
उर्दू शायरी में हज़ल के तीन अर्थ प्रचलित हैं : उलटबानी जैसी शायरी, बेतुकी शायरी या अश्लील शायरी।
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