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सोमवार, 19 मई 2014

सारी शाम (Poem by Boris Smolensky)

सिगरेट के दम घोंटते धुएँ में 
सारी शाम 
मैं अपने कमरे में 
अकेला बैठा रहूँगा 
उनकी बातें 
मथती रहेंगी मुझे 
जो शायद रात के वक्त 
या फिर शायद सुबह में 
बहुत कम उम्र में ही मारे गए
अपनी नोटबुकों में 
कुछ लाइनें यों ही खींच कर छोड़े हुए 

और 
      उनके प्यार अधूरे 
      उनके शब्द अधूरे 
      उनके काम अधूरे 


रूसी कवि - बोरिस स्मोल्नेस्की (1921-1941)
अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद - अपूर्वानंद
पत्रिका - उत्तरशती, बिहार प्रगतिशील लेखक संघ का मुखपत्र, अप्रैल-जून, 1985

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