जंगलके राजा, सावधान !
ओ मेरे राजा, सावधान !
कुछ अशुभ शकुन हो रहे आज l
जो दूर शब्द सुन पड़ता है,
वह मेरे जीमें गड़ता है,
रे इस हलचलपर पड़े गाज l
ये यात्री या कि किसान नहीं,
उनकी-सी इनकी बान नहीं,
चुपके चुपके यह बोल रहे।
यात्री होते तो गाते तो,
आगी थोड़ी सुलगाते तो,
ये तो कुछ विष-सा बोल रहे।
वे एक एक कर बढ़ते हैं,
लो सब झाड़ोंपर चढ़ते हैं,
राजा ! झाड़ों पर है मचान।
जंगलके राजा, सावधान !
ओ मेरे राजा, सावधान !
राजा गुस्सेमें मत आना,
तुम उन लोगोंतक मत जाना ;
वे सब-के-सब हत्यारे हैं।
वे दूर बैठकर मारेंगे,
तुमसे कैसे वे हारेंगे,
माना, नख तेज़ तुम्हारे हैं।
"ये मुझको खाते नहीं कभी,
फिर क्यों मारेंगे मुझे अभी ?"
तुम सोच नहीं सकते राजा।
तुम बहुत वीर हो, भोले हो,
तुम इसीलिये यह बोले हो,
तुम कहीं सोच सकते राजा।
ये भूखे नहीं पियासे हैं,
वैसे ये अच्छे खासे हैं,
है 'वाह वाह' की प्यास इन्हें।
ये शूर कहे जायँगे तब,
और कुछके मन भायेंगे तब,
है चमड़ेकी अभिलाष इन्हें,
ये जगके, सर्व-श्रेष्ठ प्राणी,
इनके दिमाग़, इनके वाणी,
फिर अनाचार यह मनमाना !
राजा, गुस्सेमें मत आना,
तुम उन लोगोंतक मत जाना।
जंगलके राजा, सावधान !
ओ मेरे राजा, सावधान !
राजा गुस्सेमें मत आना,
तुम उन लोगोंतक मत जाना ;
वे सब-के-सब हत्यारे हैं।
वे दूर बैठकर मारेंगे,
तुमसे कैसे वे हारेंगे,
माना, नख तेज़ तुम्हारे हैं।
"ये मुझको खाते नहीं कभी,
फिर क्यों मारेंगे मुझे अभी ?"
तुम सोच नहीं सकते राजा।
तुम बहुत वीर हो, भोले हो,
तुम इसीलिये यह बोले हो,
तुम कहीं सोच सकते राजा।
ये भूखे नहीं पियासे हैं,
वैसे ये अच्छे खासे हैं,
है 'वाह वाह' की प्यास इन्हें।
ये शूर कहे जायँगे तब,
और कुछके मन भायेंगे तब,
है चमड़ेकी अभिलाष इन्हें,
ये जगके, सर्व-श्रेष्ठ प्राणी,
इनके दिमाग़, इनके वाणी,
फिर अनाचार यह मनमाना !
राजा, गुस्सेमें मत आना,
तुम उन लोगोंतक मत जाना।
कवि - भवानीप्रसाद मिश्र
किताब - सितारे
(हिन्दुस्तानी पद्योंका सुन्दर चुनाव)संकलनकर्ता - अमृतलाल नाणावटी, श्रीमननारायण अग्रवाल, घनश्याम 'सीमाब'
प्रकाशक - हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, वर्धा, तीसरी बार, अप्रैल, 1952
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