कभी अपने आप से
हम डर जाते हैं
जब अपनी ही ताकत
देख लेते हैं
तब लगता है
हमें सज़ा मिलेगी
हम रटी हुई बोली में
जल्दी-जल्दी दुहराते हैं
कोई पाठ
और सर्वव्यापी पिता की शीतल छाया में
आकर खड़े हो जाते हैं
हम डर जाते हैं
जब अपनी ही ताकत
देख लेते हैं
तब लगता है
हमें सज़ा मिलेगी
हम रटी हुई बोली में
जल्दी-जल्दी दुहराते हैं
कोई पाठ
और सर्वव्यापी पिता की शीतल छाया में
आकर खड़े हो जाते हैं
कवि - मनमोहन
संकलन - ज़िल्लत की रोटी
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2006
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