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शुक्रवार, 9 मई 2014

मेरे बदले कोई दूसरा सो सकता (Mere badale koi doosara so sakata by Chandrakant Devtale)


तकिये पर किस बाजू 
और कैसे सिर और गरदन को रखूं
कि बंद पलकों की थपकी से 
खुले नींद का दरवाज़ा 

इतनी चुप्पी और अंधेरे में भी 
खुला है समुद्र का मुंह 
हाथों से समझना चाहता हूं छूकर 
अपनी देह की रहस्यमय इच्छा 
किंतु चुभते हैं हथेली में समुद्र की दहाड़ के
नुकीले दांत 

मेरी एक आंख जो एकदम आकाश में है 
तकिये से दूर 
उस पर हमला कर रहा नक्षत्रलोक का आश्चर्य 
एक नंगी चमकती तलवार आग के कपाल पर 
असहायता के अंधेरे में एक कटा हाथ 
सपनों को ख़ारिज करता हुआ 

यह कैसी दुश्मनी
क्या अपने जन्म से पहले
मैंने नींद की आंखों में चुभाया था कांटा

मेरे बदले सो सकता यदि कोई दूसरा
तो मैं उसे निहारता मुग्ध 
जब टूटता कोई तारा 
उसकी बंद पलकों पर रख देता फूल 
भींच देता जबड़े समुद्र के 
लपक लेता आग में दहकती तलवार 

सचमुच मेरे बदले 
कोई दूसरा जी सकता 
सो सकता कोई दूसरा
जिसके लिए खुलता दरवाज़ा नींद का
चुपचाप.


कवि - चंद्रकांत देवताले 
संकलन - जहां थोड़ा-सा सूर्योदय होगा 
प्रकाशक - संवाद प्रकाशन, मेरठ, 2008

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