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मंगलवार, 20 मई 2014

डगर-डगर डम (Dagar-dagar dam by Bhagavat Sharan Jha 'Animesh')

डगर-डगर डम्म-डम्म
डगर-डगर डम 
जीत गए नेताजी
नाचो छम-छम

जिनकी नैया डूबी
उनको है गम
हमरे प्रभु जीत गए
धन्य हुए हम

ऐसे वे त्यागी हैं
जन के अनुरागी हैं
होता क्या इससे यदि
थोड़ा-सा दागी हैं
ए. के. सैंतालिस के
साथ रखें बम

दिल्ली वे जाएँगे
जुगत भी भिड़ाएँगे
जो देगा मन्त्री-पद
उसमें मिल जाएँगे
खाएँगे खूब
संविधान की कसम

इस दल को तोड़ेंगे
उस दल को जोड़ेंगे
कुरसी पाने खातिर
कसर नहीं छोड़ेंगे
खाएँगे छूटकर
डकारेंगे कम

हम सब तो धन्य हुए
उन्हीं के अनन्य हुए
तिकड़म के महारथी
परम अग्रगण्य हुए
बहुरे फिर दिन उनके
बहुरा फिर तम

डगर-डगर डम्म-डम्म 
डगर-डगर डम


कवि - भागवत शरण झा 'अनिमेष'
संकलन - जनपद : विशिष्ट कवि  
संपादक - नंदकिशोर नवल, संजय शांडिल्य
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2006
सालों पहले लिखी यह कविता आज कितनी प्रासंगिक है !

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