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रविवार, 11 मई 2014

जब सब दुनिया सो जाती है (Jab sab duniya so jati hai by Meeraji)


जब सब दुनिया सो जाती है, मैं अपने घर से निकलता हूँ
बस्ती से दूर पहुँचता हूँ, सूने रस्तों पर चलता हूँ। 

और दिल में सोचता जाता हूँ क्या काम मिरा इस जंगल में !
क्या बात मुझे ले आई है इस ख़ामोशी के मंडल मैं !

ये जंगल, ये मंडल जिसमें चुपचाप का राजा रहता है 
ये रस्ता भूले मुसाफ़िर के कानों में कुछ कहता है :

सुन सदियाँ बीतीं, इस जंगल में एक मुसाफ़िर आया था 
और अपने साथ इक मनमोहन, सुन्दर प्रीतम को लाया था 

और अन्धी जवानी का जो नशा उन दोनों के दिल पर छाया था 
दोनों ही नादाँ थे, मूरख, दोनोँ ने धोका खाया था। 

वो जंगल, वो मंडल जिसमें चुपचाप का राजा रहता है
जब अपनी गूँगी बोली में ऐसी ही बातें कहता है 

मेरा दिल घबरा जाता है, मैं अपने घर लौट आता हूँ 
सब दुनिया नींद में होती है, और फिर मैं भी सो जाता हूँ।


शायर - मीराजी 
संकलन - प्रतिनिधि शायरी : मीराजी 
संपादक - नरेश 'नदीम'
प्रकाशक - समझदार पेपरबैक्स, राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2010

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