आओ, बैठा जाय -
आओ, बैठा जाय यहाँ, कुछ देर बैठा जाय !
दूबों का मखमली गलीचा,
धरती की ममता से सींचा,
खुली चाँदनी, धुला बगीचा,
आओ, बैठ यहाँ वह कौतुक फिर दुहराया जाय !
जीवन में ऐसे सुख के छिन
गिने-चुने होते हैं, लेकिन,
भूले नहीं भूलते वे दिन ;
आओ, उस दिन-सा, आँखों-आँखों मुसकाया जाय l
- 1944
कवि - रामगोपाल शर्मा 'रुद्र', 1943
संकलन - 'हर अक्षर है टुकड़ा दिल का' में 'शिंजिनी' से संपादक - नंदकिशोर नवल
प्रकाशक - प्रकाशन संस्थान, दिल्ली, 2008
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