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बुधवार, 7 अगस्त 2013

कोयल और बच्चा (Koyal aur bachcha by Vijay Dev Narayan Sahi)

सन्तों ऐसा मैंने एक अजूबा देखा l

आज कहीं कोयल बोली 
मौसम में पहली बार 
और उसके साथ ही, पिछवाड़े,
किसी बच्चे ने उसकी नकल कर के 
उसे चिढ़ाया कू … कू … 

देर तक यह बोलना चिढ़ाना चला l 
खीज कर कोयल चुप हो गयी 
खुश हो कर बच्चा l
 
कवि - विजय देव नारायण साही 
संग्रह - साखी
प्रकाशन - सातवाहन पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 1983

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