सन्तों ऐसा मैंने एक अजूबा देखा l
आज कहीं कोयल बोली
मौसम में पहली बार
और उसके साथ ही, पिछवाड़े,
किसी बच्चे ने उसकी नकल कर के
उसे चिढ़ाया कू … कू …
देर तक यह बोलना चिढ़ाना चला l
खीज कर कोयल चुप हो गयी
खुश हो कर बच्चा l
कवि - विजय देव नारायण साही
संग्रह - साखी
प्रकाशन - सातवाहन पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 1983
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