श्याम घटा घन घिर आयी l
पुरवाई फिर फिर आयी l
बिजली कौंध रही है छन-छन,
काँप रहा है उपवन-उपवन,
चिड़ियाँ नीड़-नीड़ में निःस्वन,
सरित-सजलता तिर आयी l
गृहमुख बूँदों के दल टूटे,
जल के विपुल स्रोत थल छूटे,
नव-नव सौरभ के दव फूटे,
श्री जग-तरु के सर आयी l
(संगम, साप्ताहिक, इलाहाबाद, 7 अगस्त, 1949)
पुरवाई फिर फिर आयी l
बिजली कौंध रही है छन-छन,
काँप रहा है उपवन-उपवन,
चिड़ियाँ नीड़-नीड़ में निःस्वन,
सरित-सजलता तिर आयी l
गृहमुख बूँदों के दल टूटे,
जल के विपुल स्रोत थल छूटे,
नव-नव सौरभ के दव फूटे,
श्री जग-तरु के सर आयी l
(संगम, साप्ताहिक, इलाहाबाद, 7 अगस्त, 1949)
कवि - निराला
संग्रह - असंकलित कविताएँ : निराला
संपादक - नन्दकिशोर नवल
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 1981
ab ye anubaa kahan baarish ya kahar barpa hae ya sDakon par paanee ke jamaav se jindagee baadhit karatee hae.
जवाब देंहटाएंसुंदर
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