साज़ आहिस्ता ज़रा गरदिशे जाम आहिस्ता
जाने क्या आए निगाहों का पयाम आहिस्ता l
चाँद उतरा के उतर आए सितारे दिल में
ख़्वाब में होठों पे आया तेरा नाम आहिस्ता l
कू-ए-जानां में क़दम पड़ते हैं हल्के-हल्के
आशियाने की तरफ़ तायर-ए-बाम आहिस्ता l
उनके पहलू के महकते हुए शादां झोंके
यूं चले जैसे शराबी का ख़राम आहिस्ता l
और भी बैठे हैं ऐ दिल ज़रा आहिस्ता धड़क
बज़्म है पहलू-ब-पहलू है कलाम आहिस्ता l
ये तमन्ना है के उड़ती हुई मंज़िल का गुबार
सुबह के पर्दे में या आ गई शाम आहिस्ता l
कू-ए-जानां = प्रेमिका की गली
तायर-ए-बाम = मुंडेर का पक्षी
शादां = सुख पहुँचानेवाले
ख़राम = चाल
कलाम = काव्य
शायर - मख़्दूम मोहिउद्दीन
संकलन - सरमाया : मख़्दूम मोहिउद्दीन
संपादक - स्वाधीन, नुसरत मोहिउद्दीन
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2004
this is great blog its great effort i really appreciate this keep it up
जवाब देंहटाएंgod bless you