Translate

बुधवार, 11 जून 2014

बिर्कताई (Birktai by Kabeer)

बिर्कताई  (विरक्त) कौ अंग 

मेरे मन मैं परि गई, ऐसी एक दरार l 
फाटा फटिक पषांन ज्यौं, मिला न दूजी बार ll 1 ll 

फटिक = स्फटिक, बिल्लौर 
पषांन = पाषाण, पत्थर
जैसे फटे हुए बिल्लौर पत्थर में दरार पड़ जाने से वह पुनः नहीं जुड़ सकता, उसी प्रकार मेरे मन में संसार से ऐसी विरक्ति पैदा हो गई कि अब उसके प्रति अनुराग नहीं जग सकता l


मन फाटा बाइक बुरै, मिटी सगाई साक l 
जैसे दूध तिवास का, उलटि हुआ जो आक ll 2 ll

बाइक = एक बार
सगाई = संबंध, प्रेम 
साक = साख, विश्वास 
तिवास = तीन दिन का बासी 
आक = मदार
जैसे तीन दिन का बासी दूध फटकर मदार के दूध की तरह विषैला हो जाता है, वैसे ही मेरा मन एक बार ही एकदम संसार से बुरी तरह फट गया और उसके प्रति अनुराग और विश्वास जाता रहा l


कवि - कबीर
संकलन - साखी, कबीर वाङ्मय : खंड 3 
संपादक - डॉ. जयदेव सिंह डॉ. वासुदेव सिंह 
प्रकाशक - विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, तृतीय संस्करण - 2000

आज के संदर्भ में भी कबीर की बात सच्ची है !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें