पर्वतों में मैं
अपने गाँव का टीला हूँ
पक्षियों में कबूतर
भाखा में पूरबी
दिशाओं में उत्तर
वृक्षों में बबूल हूँ
अपने समय के बजट में
एक दुखती हुई भूल
नदियों में चम्बल हूँ
सर्दियों में
एक बुढ़िया का कम्बल
इस समय यहाँ हूँ
पर ठीक इसी समय
बगदाद में जिस दिल को
चीर गयी गोली
वहाँ भी हूँ
हर गिरा खून
अपने अँगोछे से पोंछता
मैं वही पुरबिहा हूँ
जहाँ भी हूँ।
कवि - केदारनाथ सिंह संकलन - सृष्टि पर पहरा प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2014
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