मस्तिष्क का हृदय, निश्चय ही
कुछ सच रहा है कैद
तुम्हारे भीतर.
या फिर, झूठ, सब
झूठ, और कोई जन नहीं
इतना सच्चा कि जान सके
अंतर.
अमेरिकी कवि - रॉबर्ट क्रीली (21.3.1926 - 30. 3. 2005)
संकलन - रॉबर्ट क्रीली : सेलेक्टेड पोएम्स 1947-1980
प्रकाशक - यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया प्रेस, बर्कले, 1996
अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद - अपूर्वानंद
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