मैं सुन रहा हूँ
किसी की पास आने की आहट
मेरी देह बता रही है
कोई मुझे देख रहा है
जो रास्ता भूलेगा
मैं उसे भटकावों वाले रास्ते ले जाऊँगा
जो रास्ता नहीं भूलते
उनमें मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।
कवि - चंद्रकांत देवताले
संकलन - पत्थर की बैंच
प्रकाशक - राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 1996
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