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सोमवार, 3 सितंबर 2012

बेदर्द (Bedard by Bhawani Prasad Mishra)



मैंने निचोड़कर दर्द
मन को 
मानो सूखने के ख़याल से
रस्सी पर डाल दिया है

और मन
सूख रहा है

बचा-खुचा दर्द
जब उड़ जायेगा
तब फिर पहन लूँगा मैं उसे

माँग जो रहा है मेरा 
बेवकूफ़ तन
बिना दर्द का मन !


कवि - भवानीप्रसाद मिश्र
संचयन - मन एक मैली कमीज़ है
संपादक - नन्दकिशोर आचार्य 
प्रकाशक -  वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर, 1998

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