मैंने निचोड़कर दर्द
मन को
मानो सूखने के ख़याल से
रस्सी पर डाल दिया है
और मन
सूख रहा है
बचा-खुचा दर्द
जब उड़ जायेगा
तब फिर पहन लूँगा मैं उसे
माँग जो रहा है मेरा
बेवकूफ़ तन
बिना दर्द का मन !
कवि - भवानीप्रसाद मिश्र
संचयन - मन एक मैली कमीज़ है
संपादक - नन्दकिशोर आचार्य
प्रकाशक - वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर, 1998
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