उड़ी एक अफवाह, सूर्य की शादी होनेवाली है,
वर के विमल मौर में मोती उषा पिरोनेवाली है l
मोर करेंगे नाच, गीत कोयल सुहाग के गायेगी ;
लता विटप मंडप-वितान से वन्दनवार सजाएगी l
जीव-जन्तु भर गए खुशी से, वन की पाँत-पाँत डोली,
इतने में जल के भीतर से एक वृद्ध मछली बोली -
"सावधान जलचरो, खुशी में सबके साथ नहीं फूलो,
ब्याह सूर्य का ठीक, मगर तुम इतनी बात नहीं भूलो -
"एक सूर्य के ही मारे हम विपद कौन कम सहते हैं,
गर्मी भर सारे जलवासी छटपट करते रहते हैं !
"अगर सूर्य ने ब्याह किया, दस-पाँच पुत्र जन्मायेगा,
सोचो, तब उतने सूर्यों का ताप कौन सह पायेगा ?
"अच्छा है, सूरज क्वाँरा है, वंशविहीन, अकेला है,
इस प्रचंड का ब्याह जगत् की खातिर बड़ा झमेला है l"
कवि - रामधारी सिंह दिनकर (1908 -1974)
किताब - दिनकर रचनावली, खंड-2
संपादक - नन्दकिशोर नवल, तरुण कुमार
प्रकाशक - लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 2011
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