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शनिवार, 8 सितंबर 2012

सूरज से चमकीला कौन (Sooraj se chamkeela kaun by Vytaute Zilinskaite)




"सुनो, सुनो ! आज शाम को पुराने खुमी की छतरी तले एक विशाल सभा का आयोजन किया गया है. इस समारोह में मशहूर गायिका रइयां पधार रही हैं."...
गुबरैले ने ठूंठ की छाया देखकर अंदाज लगाया. छाया लम्बी नज़र आई. यानि कि शाम हो चली है. चल भाई, झट से तैयार हो जा. कहीं देर न हो जाए ! उसने नरम काई के एक नन्हे टुकड़े से अपने पंख चमकाकर साफ़ किए. वे शीशे की तरह चमचमाने लगे, कोई चाहे तो अपना मुंह तक देख ले. उसका उपनाम - चमकू - शायद अनुचित न था....
सभागार खचाखच भर चुका था. सैकड़ों पटकटनियां, वीर-बहूटियां, व्याधपतंग, घुन, छेउकी, कैप्रीकार्न बीटल आदि वहाँ पहुँच चुके थे. और तो और, कुछेक जलचर भी पासवाली झील से पैर घसीटकर मुश्किल से आ पहुंचे थे. उनकी टांगें तो पानी में तैरने की अभ्यस्त थीं, ज़मीन पर चलने की नहीं. घुन की जमात चीड़ की नुकीली पत्तियां ले आई और छेउकी का झुण्ड डाहलिया फूलों के साथ सभागार में पहुंचा - आखिर उन्हें कार्यक्रम के दौरान कुछ खाना-कुतरना जो था. कई एक मकड़े-मकड़ियां छत के नीचे अपने द्वारा बुने हुए झूले पर झूल रहे थे. एडमिरल मिस्टर तितला मिसेज़ तितली के साथ बलूत की सूखी पत्तियोंवाले एक बड़े-से बाक्स में विराजमान थे. चमकू भाई भला कब पीछे रहते. उसने भी पासवाले बाक्स पर कब्ज़ा कर लिया, जहां पिस्सुओं का परिवार बैठा हुआ था. चमकू ने उन्हें बेदखल करके आराम से अपनी टांगें फैलाईं और सीट पर पसरकर स्टेज की ओर देखने लगा.
तीसरी घंटी - कर्णघंटिका - घनघना उठी. जुगनुओं ने अपनी जगमगाती हुई बत्तियां बुझा दीं, नौ मकड़-जालों का बुना परदा खिसका ! उद्घोषिका मिसेज़ ततैया रंगमंच पर हाज़िर हुईं. उनकी धारीदार पोशाक कमर से ज़रा ज़्यादा कसकर बंधी थी - मानो सींक सलाई-सी कमर बस अभी कटकर गिर पड़ेगी.
"अब हमारा कार्यक्रम शुरू होने जा रहा है !" मिसेज़ ततैया ने भनभनाते हुए कहा. "चर्चित गायिका मिसेज़ रइयां मंच पर पधार रही हैं. 'सूर्य का गीत' उनकी एक अद्भुत रचना है. माननीय अतिथियों से निवेदन है कि वे कार्यक्रम के दौरान कुछ काटें-कुतरें नहीं."...
                "ओ सूरज, हम गीत तुम्हारे गाते हैं !
                 तुम उगते तो जीवन हम पा जाते हैं.
                 ओ सूरज, तुम एक अनोखी प्रतिमा हो.
                 जलकर हमको जीवन देते ऐसे भाग्य विधाता हो." 
और तब कोरस गायकों ने महीन, किन्तु खनकती आवाज़ में सुर मिलाया :
                 "विधाता हो...विधाता हो...विधाता हो..."
कोरस ख़त्म हुआ तो गायिका मिसेज़ रइयां  ने फिर गाया :
                  "चमके चमचम किरण तुम्हारी ओ सूरज !
                   शक्तिपुंज तुम प्यारे-प्यारे ओ सूरज !"
और इसके बाद कोरस गायकों ने स्वर मिलाया :
                   "ओ सूरज...ओ सूरज...ओ सूरज..."
समूह गायकों का स्वर थमा तो गायिका रइयां  ने फिर सुरीली आवाज़ में गाया :
                    "रहो चमकते, सूरज प्यारे !
                     जगत सहारे, प्राण अधारे.
                     पिता तुम्हीं हो, माता तुम हो !
                     भगिनी तुम हो, भ्राता तुम हो.
                     अच्छे-अच्छे, सबके प्यारे !
                     रहो चमकते, सूरज प्यारे !"
मिसेज़ रइयां का गीत खत्म होते ही तड़ातड़ तालियां बजने लगीं....पर चमकू मुंह फुलाए रहा....आगे बढ़कर भारी आवाज़ में बोला : " मैं आपसे एक ज़रूरी बात करना चाहता हूं....आपने सूरज की प्रशंशा में इतना अच्छा गीत गाया...लेकिन ज़रा यह तो बताएं कि उस वक्त सूरज क्या कर रहा था ? वह चीड़ वृक्षों के पीछे छिप गया.... और उसने एक बार इधर झांका तक नहीं....अब ज़रा सूरज का कच्चा-चिट्ठा भी सुन लें....सर्द रातों में वह मुंह छुपाए रहता है. लगातार बारिश के दिनों में धोखा दे जाता है, हम उसे मनाते हैं, बुलाते हैं, पर वह बहरा बना रहा है....जाड़े भर वह अफ़्रीका पर मेहरबान रहता है और हमारी तरफ देखता तक नहीं....बात यह है कि सूरज कभी चमकता है, तो कभी गुम रहता है. लेकिन मुझको कहीं ढूँढना नहीं पड़ता. मैं रात-दिन चमकता हूं, जगमगाता हूं....हमेशा हर जगह हाजिरी देता हूं....मुझमें तमाम ऐसी खूबियां हैं, जो सूरज में नहीं हैं. निस्संदेह मेरी प्रशंसा के गीत गाए जाने चाहिए, मुझे ही वह आदर मिलना चाहिए."
"ठीक है," गायिका ने कहा, "तो वायदा रहा कि कल शाम मैं एक और संगीत समारोह आपके सम्मान में पेश करूँगी."
अगले दिन...एक अनोखे समारोह - पहेली सभा - का आयोजन किया गया...इंतज़ार की घड़ियां खत्म हुईं....नाजुक कमरवाली उद्घोषिका मिसेज़ ततैया ने भनभनाते हुए कहा : "अब हमारी मशहूर गायिका मिसेज़ रइयां अपना पहेली गीत प्रस्तुत करने जा रही हैं. गीत का शीर्षक है 'सूरज से चमकीला कौन ?' "
                             "सूरज से चमकीला कौन ?
                              सूरज से भड़कीला कौन ?
                              दुनिया में जो चमचम चमके -
                              ऐसा रहा रंगीला कौन ?
                              सूरज जिससे आंख चुराए -
                              ऐसा छैल-छबीला कौन ?
                              झट से बोलो - कौन ?
                              राज़ ये खोलो - कौन ?"
और उसके बाद कोरस गायकों ने अपना राग छेड़ दिया :
                              "चुप मत र-हि-ये !
                               कुछ तो क-हि-ये !
                               एक पहेली सबके आगे !
                               झटपट बूझो, आओ आगे !
                               बोलो : कौन ? कौन ? कौन ?"...
"मैं...हूं...मैं ! चमकू गुबरैला ! सूरज से चमकीला और यशस्वी !"


लिथुआनियाई  लेखिका - विताउते जिलिन्स्काइते
किताब - रोबोट और तितली कथाएं 
हिन्दी अनुवाद - संगमलाल मालवीय 
मूल -विलनियूस प्रकाशन, 1984
हिन्दी संस्करण के प्रकाशक - रादुगा प्रकाशन, मास्को, 1988

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