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गुरुवार, 20 सितंबर 2012

इन दबी यादगारों से (In dabi yadgaron se by Vijay Dev Narayan Sahi)



इन दबी हुई यादगारों से खुशबू आती है 
और मैं पागल हो जाता हूँ
जैसे महामारी डसा चूहा
बिल से निकल कर खुले में नाचता है
फिर दम तोड़ देता है l

             न जाने कितनी बार 
             मैं नाच-नाच कर 
             दम तोड़ चुका हूँ
             और लोग सड़क पर पड़ी मेरी लाश से 
             कतरा कर चले गए हैं l

कवि - विजय देव नारायण साही 
संग्रह - साखी 
प्रकाशन - सातवाहन पब्लिकेशन्स, दिल्ली, 1983

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