हवा के झरोखे से झोंका आया
ढूँढ़कर आया l
आँधी में खो गया झोंका
कितनी बयार, पुरवाई से होकर
पछ्वाकर, हवा की सड़क पर
हवा का रिक्शा
हवा ने चलाया
रिक्शे में बैठ झोंका आया l
घंटी बजाकर नहीं
हवा की हेंडिल पर घंटी की जगह
उड़ता पपीहा
पियू ! पियू ! से
दूरी को सामने से हटाता
थोड़ा सा स्पर्श आया l
कवि - विनोदकुमार शुक्ल
संकलन - अतिरिक्त नहीं
प्रकाशक - वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2000
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