जब चीज़ें ऊपर को गिरने लगें, नीचे नहीं
सूरज गरमाई रख ले अपने वास्ते
तब दुनिया का कगार पकड़े रहना प्यारी
अपना ख़्याल रखना l
शब्द अगर जा मिले शत्रु के पक्ष से
चोरी से बिजली के तार अगर काट दे
हिलना मत, ठहरना अँधेरे में
अपना ख़्याल रखना l
जान-बूझकर मत बनना क्लियोपैट्रा
सुन्दर उरोजों से साँप को हटा देना
सपनों में साँप है, पागल है वासना
अपना ख़्याल रखना l
यदि अपनी पलकें भी ओट नहीं कर सकें
घुटनों के बल ऊसरों में भटकना हो
तो वर्जित छाँह में मेरी पड़ी रहना
अपना ख़्याल रखना l
मैं तुम्हारे खातिर कंबल पहन लूँगा
पहले की तरह साथ-साथ ताक पर पड़ा रह लूँगा
दुनिया को अपनी बहा दूँगा तुम मगर
अपना ख़्याल रखना l
हंगारी कवि - इश्तवान अर्शी
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - रघुवीर सहाय
मूल - मिकलोश वायेदा द्वारा संपादित आधुनिक हंगारी कविता से
किताब - रघुवीर सहाय रचनावली, खंड - 2
संपादक - सुरेश शर्मा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2000
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