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रविवार, 30 सितंबर 2012

अपना ख़्याल रखना (Apna khayal rakhna by Istvan Arashi)



जब चीज़ें ऊपर को गिरने लगें, नीचे नहीं
सूरज गरमाई रख ले अपने वास्ते 
तब दुनिया का कगार पकड़े रहना प्यारी 
                                          अपना ख़्याल रखना l
शब्द अगर जा मिले शत्रु के पक्ष से
चोरी से बिजली के तार अगर काट दे
हिलना मत, ठहरना अँधेरे में
                                          अपना ख़्याल रखना l
जान-बूझकर मत बनना क्लियोपैट्रा
सुन्दर उरोजों से साँप को हटा देना
सपनों में साँप है, पागल है वासना
                                           अपना ख़्याल रखना l
यदि अपनी पलकें भी ओट नहीं कर सकें 
घुटनों के बल ऊसरों में भटकना हो
तो वर्जित छाँह में मेरी पड़ी रहना 
                                           अपना ख़्याल रखना l
मैं तुम्हारे खातिर कंबल पहन लूँगा
पहले की तरह साथ-साथ ताक पर पड़ा रह लूँगा
दुनिया को अपनी बहा दूँगा तुम मगर 
                                          अपना ख़्याल रखना l


हंगारी कवि - इश्तवान अर्शी 
अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद - रघुवीर सहाय
मूल - मिकलोश वायेदा द्वारा संपादित आधुनिक हंगारी कविता से 
किताब - रघुवीर सहाय रचनावली, खंड - 2
संपादक - सुरेश शर्मा
प्रकाशक - राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, 2000

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